भारत विश्व गुरु रह चुकने के साथ-साथ विश्व का सबसे पुराना और सबसे बड़ा प्रजातांत्रिक व्यवस्था पद्धति वाला राष्ट्र भी है.यह ना तो अपने बाप-दादों पर उस तरह इतराने की बात है,जिस तरह लखनऊ के ताँगे वाले अपने आप को नवाबों की औलाद कहते हैं और ना ही वर्त्तमान भारत की दुर्गति को देखते हुए इतराने वालों पर हँसने की बात है,बल्कि यह तो गंभीरता से सोचने का कृष्णबिन्दु (केन्द्रीयबिंदु)होना चाहिए कि आज हम अग्रणी की जगह अनुगामी क्यों हो गए हैं! इस ब्लॉग में नीति-अनीति के भूत-वर्तमान-भविष्य पर विवेचना करेंगे !
Once being the world's master,India is the world's oldest and largest democratic system creater nation. This is not the thing to prance upon forefathers like the way Lucknow's tongawala's call themselves posterity of Nawabs. nor this is the laughing matter at the prancing one, Looking at India's current selfmade predicament. But it the centerpoint(Krishnbindu) to think seriously that instead of leading, why are we trailing today ! In this blog we will analyse on the morality-immorality's past-present-future!
(1) suppose that India, like other nations of the world, is bound by Yakshiya agreement system exploiting by finance. But this does not mean to be hardly bound by the commercial industry system that purchasing power of the food producing class, terminates. And eventually the commercial industry come to a standstill.
(2)कृपया भारत और भारतीयों की तुलना उन देशों से ही करें जहाँ अर्थ-व्यवस्था का मूलाधार प्राकृतिक उत्पादन हो.वैदिक संस्कृत के शब्द "स्वास्ति-सृष्टम" का शब्दानुवाद है "सनातन-धर्म-चक्र" और इसका लेटिन शब्द है "इकोलोजीकल चैनल". भारत में "सनातन धर्मी अर्थ-व्यवस्था पद्धतियाँ" पुनर्स्थापित होनी चाहिए अर्थात "इकोनोमिक्स मस्ट बी इकोलोजी बेस्ड".
(2) Please compare India and Indians to those countries where foundations of The economy is natural production. Vedic Sanskrit word SWAASTI-SRISHTAM's literal translation is "Sanatan Dharma Chakra". It's Latin word is "Ecological Channel." means "the Eternal Righteous-System Practices" must be restored in India. Ie "Economics Must be Ecology-based".
कृपया सभी ब्लॉग पढ़ें और प्रारंभ से,शुरुआत के संदेशों से क्रमशः पढ़ना शुरू करें तभी आप सम्पादित किये गए सभी विषयों की कड़ियाँ जोड़ पायेंगे। सभी विषय एक साथ होने के कारण एक तरफ कुछ न कुछ रूचिकर मिल ही जायेगा तो दूसरी तरफ आपकी स्मृति और बौद्धिक क्षमता का आँकलन भी हो जायेगा कि आप सच में उस वर्ग में आने और रहने योग्य हैं जो उत्पादक वर्ग पर बोझ होते हैं।
सोमवार, 20 अगस्त 2012
18. तुलसी के राम vs अकबर के कृष्ण और गाँधी का रामराज्य !
17. बुद्धावतार एवं कल्कि अवतार का वर्त्तमान में झगड़ा !
आपने भगवान कृष्ण का एक चित्र देखा होगा जिसमे वे तीन-तीन डोरियों से तीन व्यक्तियों को कठपुतली की तरह नचा रहे हैं। भूमि पर धन की तीन ढेरियाँ पड़ी है। एक व्यक्ति जो रजो प्रवृति का है वह उन तीनों ढेरियों को अपनी तरफ खींचता है,तामसी प्रवृति वाला उस के कार्य को रोकने का असफल प्रयास कर रहा होता है जबकि सात्विक प्रवृति वाला निर्विकार देख रहा होता है।
ये तीन तरह की प्रवृतियाँ सनातन मानवीय आचरण है अतः यह एक मूर्खतापूर्ण अवधारणा है कि पहले तो इन्सान वैसा था आज ऐसा है। इंसान हमेशा से तीन शारीरिक प्रकृतियों से वशीभूत हुआ इन तीन मानसिक प्रवृतियों का होता आया है। चूँकि यह विज्ञान का विषय है इसलिए तत्व की गुणधर्मिता से जुड़ा है अतः इस पर खानपान से नियंत्रण रखा जा सकता है। मैं पत्रकार की श्रद्धा/हैसियत से इतना ही कह सकता हूँ कि इस बिंदु पर जब तक नियंत्रण नहीं किया जाता तब तक हम रज की प्रवृति से मुक्त होकर लड़ने-झगड़ने, उठा-पटक वाली राक्षस प्रवृति से मुक्त नहीं हो सकते। अतः इसका एक मात्र तरीका है एक ऐसी व्यवस्था पुनः बनायी जाये जिसमे व्यवहार को आहार से नियंत्रित करने की तकनीक [विद्या] का उपयोग सामाजिक मान्यताओं के साथ जीवन शैली में प्रतिष्ठित हो।
सनातन धर्म का दैविक रूप है नैसर्गिक प्रकृति !
‘‘सनातन‘‘ संस्कृत शब्द है। "अन-अवरूद्ध या सतत प्रक्रिया" हिन्दी शब्द है तथा 'Non-dis-continued' 'Un-blocked continuous process' अंग्रेज़ी शब्द हैं। तीनों समानार्थी शब्द हैं। सनातन Eternal धर्म का ज्ञान अर्थात पारिस्थितिकी[Ecology] विषयान्तर्गत आने वाले सभी आयामों की जानकारी।
सनातन धर्म की रक्षा यानी पारिस्थितिकी[ईको सिस्टम] का विस्तार अर्थात् जब वनोत्पादन से मानव जाति के लिए आवश्यकता जितने पौष्टिक आहार की आपूर्ति न हो तो वह कृषि एवं पशुपालन दोनों को एक साथ मिलाकरकर ईको सिस्टम का विस्तार करे।
सनातन धर्म का भौतिक रूप है सामाजिक-आर्थिक-प्रशासनिक व्यवस्थाएं !
इस भौतिक जगत में अर्थव्यवस्था का आधार तो ईकोसिस्टम आधारित इकोनोमिक्स है ही, साथ ही साथ वनोत्पादन की अर्थव्यवस्था, कृषि-पषुपालन की अर्थव्यवस्था तथा निर्माण-उद्योग एवं वाणिज्य की अर्थव्यवस्था, तीनों को इस तरीके[पद्धति] से स्थापित किया जाये कि तीनों अर्थव्यवस्थाऐं एक दूसरे की पूरक बनें न कि एक दूसरे पर अतिक्रमण करें।
एक परम्परा है ज्ञान की; दूसरी परम्परा है विद्या एवं बुद्धि की।
जो परम्परा ज्ञान संबंधी है उसे एकात्म-परम्परा, आत्म-कल्याण की परम्परा और ब्राह्मण धर्म कहा गया है।
उपर्युक्त शब्द केन्द्रीय अर्थ रखने वाले शब्द हैं। ये दोनों परम्पराऐं एक दूसरे के समानान्तर चलती हैं। सभी धार्मिक सम्प्रदायों में इनका विभाजन है।
ईसा भारत में तब आये थे जब विदेशी व्यापारियों को भारत में आने से विक्रमादित्य ने रोक दिया था और सनातन धर्म के पुनरुद्धार के लिए क्रमबद्ध कार्यक्रम को आनन्द में दोलन करते हुए करने की शुरूआत की थी।
बुद्धावतार और कल्कि अवतार मुहम्मद साहब के बारे में आप सामाजिक पत्रकारिता में विस्तार से पढ़ चुके होंगे ! यहाँ दशावतार की श्रृंखला के इन अंतिम दो अंशावतारों का पुनः ज़िक्र करने के पीछे कुछ बिंदु हैं।
- आप यदि कल्कि अवतार का इंतज़ार कर रहे हैं तो यह मानकर चलें कि वह मोहम्मद साहब के रूप में हो चुका। इस तथ्य के लिए भविष्य पुराण में वर्णित कल्कि के आचरण से उनका आचरण मिलता है और यह भी मिलता है कि वह पश्चिम से आयेगा और उस समय के ऋषि[वैज्ञानिक] और मुनि [दार्शनिक] उन्हें अमान्य करेंगे। यह वर्णन भी मिलता है कि वह अपने पूर्ववर्तियों में एक अवतार को अमान्य करेगा,जैसा कि मोहम्मद साहब ने वराह अवतार को अमान्य कर दिया था।
- मोहम्मद साहब चौदह सौ साल बाद के भविष्य के बारे में बताते हुए,बताने से पहले मुस्कुरा कर चुप हो गए थे। जिसके दो अर्थ द्वेष जनित मानसिकता से निकाले गए हैं। एक अर्थ मुस्लिम सम्प्रदाय से द्वेष करने वालों की मानसिकता से निकला है कि उसके बाद मुस्लिम सम्प्रदाय समाप्त हो जयेगा। दूसरा अर्थ दुनिया से ही द्वेष करने वालों की मानसिकता से निकला है कि दुनिया ही नष्ट हो जाएगी। जबकि उसका अर्थ यह है कि कल्कियुग की समाप्ति और कृतयुग के प्रारम्भ के संधिकाल में नये कल्प का प्रारम्भ होगा और प्रजातंत्र आ जायेगा और वैश्विक व्यवस्था बनेगी। इस अर्थ में पहले के दोनों अर्थ समाविष्ट हो जाते हैं। यानी थोड़ी-बहुत उठापटक अवश्य होगी क्योंकि ब्रह्म सत्य है अतः सोचा हुआ घटित अवश्य होता है।
- उधर यक्ष प्रजाति भी, जिसने इतनी लम्बी लड़ाई के बाद भी अपनी प्रजाति को बचाये रखा। इनके विरुद्ध इतने अवतारों के पैदा होने के बाद भी हर अवतार ने इनको जीवन दान दिया। राम ने रावण के बैंकर और फाईनेंसर कुबेर को जीवनदान दिया था। कृष्ण ने इन्हें मारने के स्थान पर दो विकल्प दिए थे या तो जरथ्रुष्ट्र के नेतृत्व में भारत को छोड़ कर जाओ या फिर सनातन धर्म [प्राकृतिक उत्पादन वाले अर्थशास्त्र] को अपना कर मुख्यधारा में आ जाओ। इसी तरह मोहम्मद साहब ने भी अन्त में एक दीवार की ओट में छिपे एक समूह को न सिर्फ छोड दिया था बल्कि एक गधे पर रोटी और पानी लाद कर गधे को उनकी तरफ धकेल दिया था ताकि उनको ईश्वर पर विश्वास हो। तब से ये यक्ष भी एक ऐसे अवतार की प्रतीक्षा में है, जो उन्हें नया जीवन देगा,फिर भी ये यक्ष इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है कि यह दुनिया ही ईश्वर का साकार रूप है। इनका मानना है कि ईश्वर की दुनिया अलग तरह की है।
- अभी जो समय चल रहा है इसका एक आयाम प्रजातंत्र है, दूसरा एक आयाम वैचारिक स्वतंत्रता के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और तीसरा एक आयाम वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी सर्वविदित है। अतः आज उस तरह के अवतार की कल्पना अप्रासंगिक है जो चमत्कार के साथ पैदा होते हैं। अर्थात आप जो पत्रकारिता वृति के लेखक हैं उनको चाहिए वे इस बहुआयामी लेखन का अध्ययन वृति [रोजगार] की प्रवृति से मुक्त होकर ,पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर, दिमाग खुला रख कर समग्रता से करें और लेखन से जनक्रांति लाने का प्रयास करे। तब एक सर्वसम्मति बनेगी वही आज का अवतार होगा।
शनिवार, 18 अगस्त 2012
16.. द्वापर का अन्तिम चरण और कृष्ण अवतार ! The Last Phase of Dwapara and Krishna Avatar !
अब यदि इतना जान लेने के बाद भी,आप अवतार की कल्पना अन्यथा अर्थ में करते हैं तो आप की आप जानें लेकिन प्रजातंत्र में अवतार इसी तरह की सामूहिक हित की योजना के रूप में पैदा होगा,जैसी योजना मैं आपको दे रहा हूँ।
शुक्रवार, 17 अगस्त 2012
15. Beginning of the Republic of India ! गणराज्य भारत की शुरुआत !
वन में भ्रमण को निकले दुष्यन्त को नव राजुस्वला नारी के शरीर की गन्ध आती है और वह उसका पीछा करते करते एक आश्रम में पहूँचता है। जहाँ उसे शकुन्तला मिलती है और आश्रम के सरक्षक की अनुपस्थिति में दोनों में प्रणय सम्बन्ध बन जाते हैं।
दुष्यन्त के चले जाने पर शकुन्तला अनमनी सी बैठी होती है और अपने संरक्षक ऋषि के आने पर भी वह उनके आने की आहट सुनकर सचेत नहीं होती है और स्वागत के लिए खड़ी नहीं होती तब उस ऋषि को शंका होती है और वह उसे श्राप दे देता है कि तूं जिसकी स्मृति में इतनी एकाग्रचित्त है वह तुझे भूल जायेगा।
ऐसा ही होता है और आश्रम में ही उस एक प्रणय का देवता भरत पैदा होता है। भरत आश्रम में रह कर ही बड़ा होने लगता है। एक दिन वह वन में ही एक सिंह के शावकों के दांत गिन रहा होता है तब वहाँ से गुजर रहे पथिक दुष्यंत के पास यह समाचार पहुंचाते है।
यह वह समय था जब एक तरफ तो राम द्वारा स्थापित भारतराष्ट्र था तो दूसरी तरफ भारत का धर्म क्षेत्र भारतवर्ष था लेकिन ब्राह्मण और वैदिक दोनों परम्पराओं का समन्वय हो चुका था।लेकिन वह समन्वय ज्ञान-विज्ञान में था यानी वन-क्षेत्र में गुरुकुलों और आश्रमों में वशिष्ठ और विश्वामित्र परम्पराएं एक दुसरे की पूरक बन गयी थी|
लेकिन आर्थिक-प्रशासनिक विषय में एक तरफ वर्षा वनों वाले साम्राज्य के लिए, इंद्र पद के लिए घमासान होता था तो दूसरी तरफ नगरों में रहने वाले नागरिक शक्तिहीन और बलहीन हो गए थे। ऐसी स्थिति में वन में परवरिश प्राप्त वीर बालक भरत कौतुहल का विषय बन गया था। लेकिन श्रापित स्थिति में दुष्यंत पहचान नहीं पाया, जब शकुन्तला ने प्रमाण के लिए प्राप्त मुद्रिका दिखाई तब वह पहचान पाया।
भरत के राज्याभिषेक के बाद भरत ने नागरिकों में आई नपुंसकता को महसूस किया और यह नियम बनाए कि राजा का चुनाव क्रीडा प्रतिस्पर्धा,शक्ति प्रदर्शन और जनमत से होगा। The choice of the king to sports competition, will power performance and public opinion. इसी के साथ भारत को गणराज्यों में बाँट दिया पंचायती राज व्यवस्था शुरू की गयी। India is divided into the republics of the Panchayati Raj system was introduced.जब पांडव और कौरव जो कि एक ही परिवार के थे उन्होंने शक्ति प्रदर्शन और क्रीडा प्रतिस्पर्धाएं शुरू की तो पांडवों के,विशेषकर अर्जुन के दिमाग में युद्ध का चित्र नहीं था।When the Pandavas and the Kauravas were of the same family that started the power, performance and sports events of the Pandavas, especially Arjuna's mind was not a picture of the war.लेकिन चूँकि दुर्योधन ने राष्ट्र वादियों से सामरिक समझोते कर रखे थे और भीष्म सहित सभी राष्ट्र के वेतन भोगी थे।अतः सभी की धृति राष्ट्र में बंधी थी।But the strategic agreement with litigants Duryodhana had put the nation and all nations, including Bhishma were salaried. So all tenure was bound in the nation.
लेकिन पांच पांडव पंचायती राज व्यवस्था के समर्थक थे और उन्होंने कहा कि हमें पांच गाँव ही दे दिये जाएँ।But the five Pandavas, who was a supporter of the PRI system that gave us the five-country visit.इसी बात पर महाभारत नामक गृह युद्ध हुआ। Called the Mahabharata thing similar Civil War.
यह वह समय था जब देत्य,दानव,राक्षस बोलकर कोई नस्ल भेद नहीं रह गया था अतः यहाँ पर जब कृष्णावतार हुए तब एक नए नाम का सृजन हुआ,सुर-असुर।This was the period when Dety, Monster, Monster saying apartheid was no longer there, so here's the new name was created when Krishnawatar, sur - Asur।
शुक्रवार, 3 अगस्त 2012
12. राक्षस-रक्षक ! रामावतार !
राम रक्षक कहलाऐ और रावण राक्षस ।
आक्रमणकारी चरित्र को राक्षस कहा जाता है और राक्षसों से सुरक्षा देने वाला रक्षक कहा जाता है।अर्थात उस समय शस्त्र-निर्मान विज्ञान का विकास हो गया था जबकि उससे पहले विश्वामित्र ने कृत्रिम उपग्रह पर अनुसंधान कर लिया था। [Note इस विषय का बाद में उल्लेख करेंगे अभी अवतार कथा चल रही है]
राम रक्षक
रावण की फैलाई जीवन शैली से जब दक्षिण भारत का वनोत्पादन प्रभावित होने लगा और वन नष्ट होने लगे तथा नगरीय उपभोक्ता सभ्यता का विकास होने लगा और रावण उत्तर भारत तक अपनी पहुँच बनाने लगा तो इन्द्र ने रावण के ऊपर सैनिक आक्रमण किया।
14. राम सेतु
13. राम रक्षक ! रामायण [ राम-रावण ] की पृष्ट भूमि !
जब रावण ने लंका में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया तो दक्षिण भारत पर भी अपने साम्राज्य का विस्तार करने लगा। उस समय के इस पुरे ब्रह्मक्षेत्र,धर्मक्षेत्र में विश्वामित्र की वैदिकपरम्परा और वशिष्ठ की ब्रह्मपरम्परा दोनों समानान्तर स्थापित थी अर्थात एक तरफ एकात्म परम्परा के गुरुकुलों में स्वाध्याय की सुविधा भी थी तो दूसरी तरफ आश्रमों में जैविक प्रजाति संवर्धन का वैदिक कार्य भी चल रहा होता था। लेकिन सैन्य बल न के बार थे। सेना के नाम पर देवराज इंद्र के पास वन संरक्षण और संवर्धन के लिए सैन्यबल था।
जब रावण ने अपने साम्राज्य का विस्तार शुरू किया तो वह रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। तब एक तरफ तो अगस्त्य ऋषि ने उत्तर भारत को सुरक्षित करने के लिय कच्छ के रन से लेकर उड़ीसा के समुद्र तटीय क्षेत्र तक आदिवासी जातियों का, जिनको बाद में गोँड आदिवासी नाम दिया गया,का एक बेल्ट बना दिया जिसके लिए आता है की अगस्त्य ऋषि ने अपनी बाहें फैलाकर रावण की भोगवादी [उपभोक्ता] सभ्यता को उत्तर भारत में आने से रोका।
दूसरी तरफ इंद्र ने अपने सैनिक अभियान चला रखे थे उसमें अन्य साम्राज्यों की सेना के साथ-साथ दशरथ की सेना भी थी । लम्बे समय तक चला युद्ध अनिर्णित रहा तब एक सामरिक समझौता हुआ ।
एक तो राजा होते हुए भी अपनी कर्तव्य पालना में विफल रहे।
दूसरी उनके कोई संतान नहीं थी और वे एक पत्नी परम्परा को निभाते आने वाले वंश से थे।
तीसरी रावण की उपभोक्ता संस्कृति और शाही ठाठ को देख कर प्रजा के मानस में यह सुगबुगाहट (प्रश्न वाचक हलचल) पैदा हुई कि राजा तो रावण जैसा ऐश्वर्यशाली होना चाहिये यह दशरथ जो हमारी ही तरह रहता है, यह कैसा राजा ?