दुनिया से तात्पर्य जगत (जीवजगत) से है तो यह जिज्ञासा का एक बिंदु है कि दुनिया का कालचक्र क्या है!
लम्बे कालचक्र को जानने से पूर्व यह जानना चाहिए कि माया सभ्यता के कैलेंडर की गणना का आधार क्या है और माया सभ्यता का ख़ुद का इतिहास क्या है, जो समाप्त हो गयी फिर भी दुनिया के फिर से समाप्त होने की भविष्यवाणी बता गयी!
उस भूतकाल का अध्ययन,जो वर्तमान से तुलना करने जैसा भी होता है और भविष्य भी होता है,तीन विधियों से होता है।
1. धार्मिक मान्यताओं एवं पौराणिक साहित्य से
2. श्रुति परम्परा से अर्थात पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाने वाली कथाओं, क़िस्से-कहानियों एवं लिखित ऐतिहासिक साहित्य के माध्यम से ।
3. विज्ञानसम्मत, तर्कसंगत अनुमानों के माध्यम से ।
1. अपने पूर्वजों की खोज करने और उन पर गर्व करने की मानसिकता के चलते यह मानसिकता भौतिकवादी तमोगुणी समाज में होती है । इस विषय में सामाजिक पत्रकारिता वाले ब्लॉग में पढ़ें।
2. सत्य को जानने के परिप्रेक्ष्य में जब हम पूर्व के इतिहास का और घटित घटनाओं का अध्ययन करते हैं तो यह मानसिकता दार्शनिक स्वभाव के चलते बनती है।
अध्ययन का मन्तव्य एक सुन्दर सामाजिक ढाँचे की रचना करने के परिप्रेक्ष्य में समझें। ताकि आत्म अनुशासित रह कर नैतिकता के आधार वाली नीति पर चलने वाले समाज का निर्माण कर सकें। इसके लिए हमें इतिहास को एक विशेष दृष्टिकोण से समझना है ताकि हम पूर्व की उन घटनाओं से ये सबक लें कि उनमें मानव स्वभाव की क्या-क्या भूमिका रहती है,जिन घटनाओं के परिणामस्वरूप हम बार-बार इस बुरे हालात में पहुँचते हैं। उन घटनाओं को रोकने में अभी हम क्या-क्या भूमिका निभा सकते हैं और यह भी जानें कि उन घटनाओं से पहले विश्व कैसा था और बाद में कैसा बना! ताकि हम वर्तमान में ऐसा कार्यक्रम बना सकें जो हमें सन्तुलित समाज व्यवस्था बनाने के लिए एक अवधारणा(दृष्टिकोण) दे सके।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें