Outlook, maxim, law, rule, motto, etc का ज्ञान लेकिन जब तक हम सांख्य का योग अर्थात प्रयोग-उपयोग करना नहीं जानते सांख्य का ज्ञान न सिर्फ व्यर्थ है बल्कि दुःख का कारण बन जाता है|
मैं उन सभी लोगों से क्षमा चाहता हूँ जो धार्मिक-अवतारों और धार्मिक साहित्य को लेकर पूर्वाग्रहग्रस्त हैं। पूर्वाग्रहग्रस्त लोग दो वर्गों में वर्गीकृत होते हैं। मैं उन सभी लोगों से क्षमा चाहता हूँ जो धार्मिक-साहित्य से राग-अनुराग रखते हैं अतः उनके पीछे की वैज्ञानिक सच्चाई जाने बिना ही अन्धानुयायी बन कर, आँख बंद करके भ्रम में भ्रमण करते हैं और उनसे भी क्षमा चाहता हूँ जो धार्मिक साहित्य से द्वेष रखते हैं अतः उसमें लिखे सत्य को जानने से पहले ही अस्वीकार कर देते हैं। अतः मैं उनसे भी क्षमा चाहता हूँ जो धर्म के नाम पर अतिवादी, कट्टरवादी और अन्धानुयायी होते हैं। उनसे भी क्षमा चाहता हूँ जो धर्म के नाम पर बिदक जाते हैं और धर्म के विषय में कुछ भी जानना उनके लिए हास्यास्पद आचरण है। मैं उनसे भी क्षमा चाहता हूँ जो धर्म के नाम पर नाक-भौं सिकोड़ते हैं।
अभी एक लेख पढ़ा था जिस में लेखक ने लिखा है कि अब कल्कि अवतार की आवश्यकता है। कल्कि अवतार के बारे में अनेक प्रकार की अवधारणायें हैं। लेकिन मैं यदि नेताजी सुभाष बोस की भाषा में कहूँ कि 'आप मुझे मान्यता दें मैं आपको प्रजातांत्रिक व्यवस्था का स्वर्ग बना कर दूँगा'। तो क्या आप इस बात को स्वीकार करने की मनोस्थिति बना सकते हैं ? यदि हाँ तो आप यह स्वीकार करने की बौद्धिक क्षमता अवश्य रखते होंगे कि कृष्णावतार एक ग्वाला थे। ईसा मसीह गडरिये[भेड़ पालक] थे। पैगम्बर मोहमद एक रेबारी[ऊँट,बकरी पालक] थे। बुद्ध एवं महावीर आदिवासी थे। परशुराम वन संरक्षक थे और वहीं से आदिवासी से ब्राह्मण बनने की परंपरा की शुरुआत अर्थव्यवस्था में दखल देने से हुई। हलधर बलराम किसान थे। श्रीराम एक योद्धा थे। सभी अवतारों ने अपने अपने समय के काल स्थान परिस्थिति के अनुरूप तप किया था। जादू किसी के पास नहीं था।
जब राजाशाही होती है तो एक राजा का मंत्री बन कर या संपर्क करके उससे मंत्रणा करके जनहितकारी व्यवस्था को बलपूर्वक अंजाम दिया जा सकता है। लेकिन आज प्रजातंत्र है। प्रजातंत्र के अनुरूप ही वर्त्तमान की परस्थितियों में कोई अवतार अवतरित होगा। आप मुझे सर्वसम्मति दे सकने वाली निर्दलीय संसद बना कर दें। मैं एक पत्रकार की तरह आपको वह डिज़ाइन बना कर दूंगा जो सर्वमान्य होगी। बिना किसी हिंसक क्रान्ति के एक क्रमबद्ध कार्यक्रम दूँगा जो आनंद में दोलन करते हुए चलने वाला होगा। बुद्ध, महावीर, परशुराम, बलराम, ईसा, मोहम्मद, गोपालक गोपाल इत्यादि पूजनीय नहीं बल्कि आदर्श पुरुष थे। उसी रूप में उन्हें पुनर्स्थापित किया जायेगा। संस्कृत में आदर्श दर्पण, Mirror को भी कहा जाता है। आपका आदर्श उसे कहा जायेगा जिसमे आप अपनी छवि देखते हैं क्योंकि उसके जैसा बनना चाहेंगे।
इन्होंने जिन सम्प्रदायों की स्थापना की थी वे सभी सनातन धर्म की सुरक्षा,संरक्षण,संवर्धन और विस्तार के हेतू थे। इन्होंने सांख्य का योग किया था।
यह तथ्य भी मैं बार-बार दोहरा रहा हूँ कि सनातन धर्म धार्मिक वैज्ञानिक भाषा संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ होता है अनवरुद्ध, अविराम, निरंतर चलने वाला चक्र, जिसे लेटिन में ईकोलोजी कहा जाता है।विडम्बना यह है कि जो ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध, जैन अथवा अन्य किसी सम्प्रदाय के हैं और वे अपने सम्प्रदाय से राग-अनुराग रखने के कारण अन्य सम्प्रदायों से द्वेष रखते हैं वे 'सनातनधर्म' शब्द को हिन्दू धर्म की शाखा समझने की त्रुटी कर सकते हैं। जो हिन्दूधर्म के नाम से धर्म की ठेकेदारी करते हैं उनमें जो अग्रणी हैं उन्होंने कृषिकर्म क्षेत्र, वनक्षेत्र और वनों में रहने वाले आदिवासियों को सिर्फ चित्रों और अखबारों में ही देखा है। वे शहरों में रहने वाले, भारी उद्योगों के समर्थक और पूंजी का खेल यानी जुआ खेलने वाले, राम और गाय को सिर्फ राजनीति का हथियार मानाने वाले हैं। अतः इन साम्प्रदायिक मानसिकता वालों के भरोसे सनातन धर्म की रक्षा के समर्थन में आगे आने की सम्भावना कम ही लग रही है।
जैसा कि मैं एक पत्रकार की भूमिका में बार-बार दोहरा रहा हूँ कि राष्ट्र,सम्प्रदाय और क्षेत्र को लेकर कभी भी विश्वयुद्ध और गृहयुद्ध की सम्भावना बन सकती है उसका एक नमूना अभी म्यांमार,बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच फँसे पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों के साथ जो हुआ और हो रहा है वह देख ही रहे हैं। अब भी आप यदि अपनी चेतना को जागृत नहीं करते हैं तो भारत को बचाने कोई भी अवतार पैदा होने वाला नहीं है। क्योंकि अवतार भी तभी पैदा होता है या उतरता है जब प्रार्थना[Appeal] करेंगे। जबकि आज जनसाधारण, जिनको गीता में साधु कहा गया है और उनकी रक्षा में सृजन की बात कही गयी है वह तो खुद धर्म के धर्म के विरुद्ध आकांक्षाएँ पाले बैठा है तब अवतार कैसे सम्भव है। ऐसी स्थिति में तो प्रकृति अवतार के रूप में नहीं सुनामी के रूप में अपना सृजन भले ही करले।
यदि आप जनसाधारण के रूप में भारत को स्वर्ग बनाने हेतु स्वयं प्रयास करते है और स्वर्ग के लिए राजनीति में खुद लड़ने के लिए आगे आते हैं और सक्रिय होकर अपने क्षेत्र का जनप्रतिनिधि दलीय राजनीति से ऊपर उठकर चुनते हैं तो मैं कहता हूँ...
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